Sant Ravidas ke pad: एक संक्षिप्त परिचय:
Sant Ravidas ke pad मध्यकालीन काव्य सौंदर्य का ऐसा अभूतपूर्व महासागर है, जिससे व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुसार गोता लगाकर सामाजिक, सांस्कृतिक और प्रगतिशील जीवन मूल्य रूपी मोती निकाल सकता है। संत रविदास इतिहास के ऐसे दौर में अपनी आवाज़ को बुलंद कर रहे थे जिस समय एक एक चमार जाति का कोई अस्तित्व नहीं था। भारतीय समाज में इस जाति को मनुष्य का भी दर्जा प्राप्त नहीं था। इस दौर में अगर किसी ने अपने अस्तित्व की पहचान कराने का प्रयास करता तब संपूर्ण व्यवस्था पूरी शक्ति से उस आवाज़ को दबा देती थी। ऐसे समय में Sant Ravidas ke pad एक क्रांतिकारी स्वर को बल प्रदान करते हैं।
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रैदास बानी से चयनित पद व्याख्या सहित:
“अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी ।
प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी , जाकी अँग-अँग बास समानी ।।
प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा , जैसे चितवत चंद चकोरा ।
प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती , जाकी जोति बरै दिन राती ।।
प्रभु जी, तुम मोती हम धागा , जैसे सोनहिं मिलत सुहागा ।
प्रभु जी, तुम तुम स्वामी हम दासा , ऐसी भक्ति करै रैदासा ।।”
कठिन शब्दों के अर्थ:
- रट लागी- गहरी आदत पड़ गई (Deeply engrossed), अँग-अँग- शरीर का हर अंग (Every part of the body), बास– सुगंध (Fragrance), घन– बादल (Cloud), चितवत– टकटकी लगाकर देखना (Gazing), चकोरा– एक पक्षी जो चंद्रमा को देखता रहता है (Chakora bird that gazes at the moon), ज्योति-प्रकाश (Light), बरै– जलती रहती है (Burns continuously), सोनहिं– सोना (Gold), सुहागा– एक पदार्थ जिससे सोने की चमक बढ़ती है (Borax, used to enhance gold’s shine), स्वामी– मालिक, भगवान (Master, Lord), दासा– सेवक, भक्त (Servant, Devotee)
संदर्भ:
- इस पद में संत रविदास जी ने भक्त और भगवान के अटूट संबंध को सुंदर उपमाओं के माध्यम से प्रस्तुत किया है। वे यह कहते हैं कि जब एक बार भगवान की भक्ति में मन लग जाता है तब उससे अलग होना असंभव हो जाता है। यह पद भक्ति मार्ग की गहराई को दर्शाता है और यह प्रेरणा देता है कि भगवान से प्रेम और समर्पण ही मोक्ष का मार्ग है।
व्याख्या:
प्रस्तुत पद में संत रविदास जी प्रभु भक्ति की गहरी अनुभूति को व्यक्त करते हैं। वे कहते हैं कि अब राम नाम की ऐसी लगन लग गई है कि इसे छोड़ना असंभव हो गया है। इस पद में वे विभिन्न उपमाओं के माध्यम से ईश्वर और भक्त के अटूट संबंध को दर्शाते हैं। जैसे चंदन जब पानी में घुल जाता है तो पूरा पानी सुगंधित हो जाता है वैसे ही प्रभु की कृपा से भक्त का जीवन पवित्र और सुगंधित हो जाता है।
प्रभु घन (बादल) के समान हैं और मैं मोर के समान हूँ जो उनके आने से आनंद का अनुभव करता हूँ। जैसे चकोर पक्षी चंद्रमा को टकटकी लगाकर देखता है और उससे प्रेम करता है, वैसे ही मेरा मन हमेशा प्रभु की ओर लगा रहता है। प्रभु दीपक हैं और मैं उस दीपक की बाती हूँ। जब तक दीपक जलता रहता है बाती उसमें समर्पित रहती है। उसी प्रकार मैं भी प्रभु के प्रकाश में जीवन अर्पित कर दिया है।
मोती और धागे का संबंध बहुत गहरा होता है। मोती धागे में पिरोकर एक सुंदर माला बनाई जाती है। सोना का जब सुहागा से मेल होता है तब वह और अधिक चमकदार हो जाता है वैसे ही भक्त और ईश्वर का संबंध दोनों के सौंदर्य और दिव्यता को प्रकट करता है। प्रभु स्वामी हैं और रैदास उनका दास है। संत रविदास कहते हैं कि वे इसी भक्ति भाव में लीन रहकर जीवन व्यतीत करना चाहते हैं।
Sant Ravidas ke pad में काव्य-सौंदर्य:
- भाव-सौंदर्य: पूरे पद में भक्ति भाव का गहराई से चित्रण हुआ है, जिसमें भक्त रैदास की गहरी श्रद्धा झलकती है। चकोर और चंद्रमा, बादल और मोर की उपमाओं में भक्त रैदास और भगवान के बीच प्रेमाभक्ति का चित्रण हुआ है।
- अलंकार सौंदर्य: उपमा अलंकार: “प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी।” (चंदन और पानी की उपमा), “प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती।” (दीपक और बाती की उपमा), रूपक अलंकार: “जाकी जोति बरै दिन राती।” (भगवान को दीपक के रूप में प्रस्तुत किया गया है।), अनुप्रास अलंकार: “प्रभु जी, तुम मोती हम धागा।” (त और म ध्वनियों की पुनरावृत्ति)
- प्रतीक एवं बिंब सौंदर्य: चंदन और पानी: भक्त और भगवान के गहरे संबंध का प्रतीक। बादल और मोर: ईश्वर की कृपा से भक्त का आनंदित होना। दीपक और बाती: भक्त भगवान के प्रकाश में जीता है। मोती और धागा: भक्त और भगवान का परस्पर पूरक संबंध।
“प्रभु जी तुम संगति सरन तिहारी।जग-जीवन राम मुरारी॥
गली-गली को जल बहि आयो, सुरसरि जाय समायो।
संगति के परताप महातम, नाम गंगोदक पायो॥
स्वाति बूँद बरसे फनि ऊपर, सोई विष होइ जाई।
ओही बूँद कै मोती निपजै, संगति की अधिकाई॥
तुम चंदन हम रेंड बापुरे, निकट तुम्हारे आसा।
संगति के परताप महातम, आवै बास सुबासा॥
जाति भी ओछी, करम भी ओछा, ओछा कसब हमारा।
नीचे से प्रभु ऊँच कियो है, कहि ‘रैदास चमारा॥”
कठिन शब्दों के अर्थ:
- संगति– साथ, मेल-जोल (Association, Company), शरण- शरणागति, शरण लेना (Refuge, Shelter), जग-जीवन- संपूर्ण संसार का जीवन देने वाला (Life of the World), गंगोदक- गंगा का जल (Water of the Ganges), स्वाति बूँद- स्वाति नक्षत्र में गिरने वाली वर्षा की बूँद (Rainwater of Swati Constellation), फणि- साँप (Serpent), ओछा- छोटा, नीच (Low, Inferior), कसब- पेशा, काम (Occupation), चमारा- मोची, जूते बनाने वाला (Cobbler)
संदर्भ:
- इस पद में संत रविदास जी यह समझा रहे हैं कि मनुष्य का उत्थान या पतन उसकी संगति पर निर्भर करता है। यदि वह संतों और प्रभु की भक्ति में रहता है, तो वह उच्च बन जाता है, चाहे उसका जन्म कितना भी साधारण क्यों न हो।
व्याख्या:
संत रविदास जी इस पद में संगति (संगत) के विभिन्न सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव को समझा रहे हैं। वे कहते हैं कि प्रभु (ईश्वर) की संगति का महत्व बहुत बड़ा है। जब कोई व्यक्ति संतों या प्रभु की शरण में आता है उस भक्त का जीवन उसी प्रकार धन्य हो जाता है, जैसे नदियों, नालों का जल गंगा में मिलकर पवित्र हो जाता है।
जैसे विभिन्न नदियों का जल बहकर गंगा में समा जाता है और गंगाजल के समान पवित्र हो जाता है, वैसे ही अच्छे लोगों की संगति से साधारण व्यक्ति भी महान और पवित्र बन सकता है।
स्वाति नक्षत्र में गिरने वाली वर्षा की बूँद का प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि वह किसके संपर्क में आती है। यदि वह साँप (फणी) के मुँह में गिरती है, तो विष बन जाती है। यदि वह सीप में गिरती है, तो मोती बन जाती है।
रविदास जी स्वयं को एक साधारण और तुच्छ वृक्ष (रेंड़) मानते हैं और ईश्वर को चंदन के समान श्रेष्ठ बताते हैं। वे कहते हैं कि जब साधारण वृक्ष चंदन वृक्ष के संपर्क में आता है तब उस साधारण वृक्ष में भी सुगंध आ जाती है। उसी प्रकार प्रभु की संगति से एक साधारण व्यक्ति भी महान बन सकता है।
रविदास जी अपने जन्म को नीची जाति में मानते हैं और कहते हैं कि उनका कर्म भी साधारण (मोची का काम) है। लेकिन प्रभु की कृपा और संगति के कारण वे ऊँचे स्थान पर पहुँचे हैं। यहाँ वे सामाजिक भेदभाव का खंडन करते हुए यह संदेश दे रहे हैं कि सच्ची ऊँचाई या महानता जन्म से नहीं बल्कि प्रभु भक्ति और सद्गुणों से प्राप्त होती है।
Sant Ravidas ke pad में काव्य-सौंदर्य:
- भाव सौंदर्य: पूरे पद में प्रभु की महिमा गान, उनकी संगति के प्रभाव और भक्ति की महत्ता का गुणगान किया गया है।
- अलंकार सौंदर्य: उपमा अलंकार: “तुम चंदन हम रेंड बापुरे” यहाँ प्रभु को चंदन और स्वयं को साधारण रेंड़ (एक बिना सुगंध वाला पेड़) की उपमा दी गई है। “स्वाति बूँद बरसे फनि ऊपर, सोई विष होइ जाई” स्वाति नक्षत्र की बूँद का विष या मोती बनना सुंदर उपमा का उदाहरण है। रूपक अलंकार: “नाम गंगोदक पायो”- यहाँ प्रभु के नाम को गंगाजल के समान पवित्र कहा गया है। अनुप्रास अलंकार: “संगति के परताप महातम”- ‘स’ और ‘प’ ध्वनि की पुनरावृत्ति से अनुप्रास अलंकार उत्पन्न हुआ है।
- प्रतीक एवं बिंब सौंदर्य: गंगाजल– पवित्रता और प्रभु भक्ति का प्रतीक है। स्वाति बूँद- सही संगति से व्यक्ति के गुणों में विकास का प्रतीक है। चंदन और रेंड़- संत और असंत के प्रभाव को दर्शाने वाला प्रतीक है।
“इहि तनु ऐसा जैसे घास की टाटी।
जलि गइओ घासु रलि गइओ माटी।। टेक।।
ऊँचे मंदर साल रसोई। एक घरी फुनी रहनु न होई।।
भाई बंध कुटंब सहेरा। ओइ भी लागे काढु सवेरा।।
घर की नारि उरहि तन लागी। उह तउ भूतु करि भागी।।
कहि रविदास सभै जग लूटिआ। हम तउ एक राम कहि छूटिआ।।”
कठिन शब्दों के अर्थ:
- तनु– शरीर (Body), टाटी– घास-फूस से बनी झोंपड़ी (Hut made of grass), जलि गइओ– जल गया, (Burned), रलि गइओ– मिल गया, घुल गया, (Merged, Mixed), मंदिर– महल, भवन, (Mansion, Palace), साल– लकड़ी का बड़ा खंभा, मजबूत घर, (Large wooden pillar, Strong house), फुनी– पलभर, क्षण, (Moment, Instant), बंध,- रिश्तेदार, (Relatives), सहेरा– सगे-संबंधी, (Close relatives), लागे काढु– जल्दी ही चले जाते हैं (Leave soon), सवेरा– सुबह, जल्दी, (Morning, Soon), उरहि– हृदय से, मन से, (From the heart, Emotionally), भूतु करि भागी– भूत समझकर भाग गई, (Fled thinking of as a ghost), सभै- सभी, (All), लूटिआ– धोखा खाया, लूटे गए, (Deceived, Robbed), छूटिआ– मुक्त हो गए, (Liberated, Freed)
संदर्भ:
- संत रविदास जी इस पद में मानव शरीर की क्षणभंगुरता और संसार की असारता (नश्वरता) का वर्णन कर रहे हैं। वे बताते हैं कि यह शरीर घास की झोंपड़ी के समान अस्थिर और नाशवान है, जो जलकर मिट्टी में मिल जाती है।
व्याख्या:
रविदास जी कहते हैं कि यह मानव शरीर घास की बनी झोंपड़ी (टाटी) के समान है। जब मृत्यु का समय आता है तब यह जलकर मिट्टी में मिल जाता है यानी इसका कोई स्थायित्व नहीं है। यह शरीर क्षणभंगुर है। व्यक्ति चाहे कितने भी ऊँचे महल, शानदार घर क्यों न बना ले लेकिन मृत्यु के बाद वह एक पल भी इनमें नहीं रह सकता। यह केवल संसार की मोह-माया है। जो मृत्यु के साथ समाप्त हो जाता है।
मनुष्य के भाई, परिवार, रिश्तेदार और सभी सगे-संबंधी भी अधिक समय तक साथ नहीं रहते। मृत्यु के बाद वे भी व्यक्ति को छोड़ देते हैं और सुबह की धूप की तरह गायब हो जाते हैं। अर्थात ये संबंध भी स्थायी नहीं हैं। जिस पत्नी से प्रेम करते है, जो हर सुख-दुख में साथ रहती है, वह भी मृत्यु के बाद शव को भूत समझकर डर जाती है और दूर हो जाती है। यह संसार का स्वभाव है कि मृत्यु के बाद कोई भी साथ नहीं देता है।
संत रविदास कहते हैं कि यह संसार छल-कपट और मोह-माया का एक मृगजाल है। इसमें सभी फँसकर समाप्त हो चुके हैं। लेकिन वे स्वयं केवल राम (ईश्वर) का नाम लिया है उसी को धन-दौलत और सम्बन्धी माना है और उसी की भक्ति से संसार के बंधनों से मुक्त हुए हैं।
Sant Ravidas ke pad में काव्य-सौंदर्य:
- भाव सौंदर्य: पूरे पद में संसार की असारता और क्षणभंगुरता का चित्रण किया गया है, जो वैराग्य (सन्यास) की भावना उत्पन्न करता है। अंत में यह पद कहता है कि ईश्वर का भक्ति ही मुक्ति का एकमात्र मार्ग है।
- अलंकार सौंदर्य: उपमा अलंकार: “इहि तनु ऐसा जैसे घास की टाटी।” शरीर की तुलना घास की झोंपड़ी से की गई है। रूपक अलंकार:“जलि गइओ घासु रलि गइओ माटी।” शरीर के नष्ट होने को सीधे जलने और मिट्टी में मिल जाने से जोड़ा गया है। अनुप्रास अलंकार: “भाई बंध कुटंब सहेरा। ओइ भी लागे काढु सवेरा।।” ‘ब’, ‘क’ और ‘स’ ध्वनि की पुनरावृत्ति से अनुप्रास अलंकार बना है।
- प्रतीक सौंदर्य: घास की टाटी: शरीर की क्षणभंगुरता का प्रतीक है। ऊँचे मंदर साल रसोई: सांसारिक ऐश्वर्य और वैभव का प्रतीक है। भूत करि भागी: मृत्यु के बाद संसारिक संबंधों के छूट जाने का प्रतीक है।