Rashmirathi रश्मिरथी खंडकाव्य का द्वितीय सर्ग भावार्थ सहित

Rashmirathi द्वितीय सर्ग भाग एक

शीतल, विरल एक कानन शोभित अधित्यका के ऊपर,

कहीं उत्स-प्रस्त्रवण चमकते, झरते कहीं शुभ निर्झर।

जहाँ भूमि समतल, सुन्दर है, नहीं दीखते है पाहन,

हरियाली के बीच खड़ा है, विस्तृत एक उटज पावन।

Rashmirathi कठिन शब्द:  शीतल (उत्तेजनाहीन) Cool, विरल Rare, कानन forest, अधित्यका, Mountain, उत्स-प्रस्त्रवण (जलधारा) water stream, निर्झर Waterfalls, समतल plane, पाहन Stone,  विस्तृत extensive, उटज (पर्ण कुटी) cottage, पावन holy

व्याख्या: एक पहाड़ी के ऊपर निर्जन शांत उत्तेजना रहित वन शोभा दे रहा है। कहीं जलधाराएँ चमक रही हैं, तो कहीं स्वच्छ झरने झर रहे हैं। जहाँ की भूमि समतल सपाट और सुंदर है वहाँ किसी प्रकार के पत्थर भी नहीं दिख रहे हैं। ऐसी सुंदर हरियाली के बीच एक विशाल पवित्र पर्णकुटी है।

विशेष: प्रस्तुत पंक्तियों में दिनकर जी एक पवित्र वन का विभिन्न विशेषताओं के साथ चित्रण किया है। 

खड़ी बोली हिंदी में तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है।

आस-पास कुछ कटे हुए पीले धनखेत सुहाते हैं,

शशक, मूस, गिलहरी, कबूतर घूम-घूम कण खाते हैं।

कुछ तन्द्रिल, अलसित बैठे हैं, कुछ करते शिशु का लेहन,

कुछ खाते शाकल्य, दीखते बड़े तुष्ट सारे गोधन।

कठिन शब्द  धनखेत Harvested, सुहाते Pleasant हैं, शशक (खरगोश, खरहा) rabbit, मूस, गिलहरी Squirrels, लेहन (जीभ से चाटते हुए प्यार करना), तन्द्रिल Restless, अलसित Lazy, शिशु Baby, शाकल्य (ज्यो, तील आदि के दाने) तुष्ट Satisfied, गोधन Cows

भावार्थ: उस पवित्र वन में पर्णकुटी के आसपास कुछ पीले खेत शोभा दे रहे हैं। उन खेतों में खरहा, खरगोश, चूहा, गिलहरी आदि यहाँ वहाँ घूम-घूम कर फसल के कण खा रहे हैं। कुछ अर्ध निद्रा में आलस युक्त बैठे हैं, तो कुछ अपने शिशु को चाट-चाट कर प्रेम कर रहे हैं। कुछ जो तिल आदि के दाने खा रहे हैं सरी गाये संतुष्ट हैं।

विशेष: प्रस्तुत पंक्तियों में दिनकर उस वन में शोभित पर्णकुटिया के आसपास जीव-जंतुओं का वर्णन कर रहे हैं। गिलहरी, खरगोश आदि की चहल कदमी मनमोहन लेती है।

खड़ी बोली हिंदी में तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है।

हवन-अग्नि बुझ चुकी, गन्ध से वायु, अभी, पर, माती है,

भीनी-भीनी महक प्राण में मादकता पहुँचती है,

धूम-धूम चर्चित लगते हैं तरु के श्याम छदन कैसे?

झपक रहे हों शिशु के अलसित कजरारे लोचन जैसे।

कठिन शब्द: हवन-अग्नि Holi Ritual, गन्ध Smell, भीनी-भीनी महक Sweet smell, मादकता intoxicates तरु tree, लोचन eyes 

भावार्थ: वहाँ हवन की अग्नि अभी-अभी बुझ चुकी है, लेकिन वातावरण में अभी भी उस हवन की सुगंध विद्यमान है। वह सुगंध प्राणों को एक सुखद आनंद प्रदान करती है। वृक्षों की काली-काली शाखाएँ उस बुझी हुई अग्नि के धुएं से धूमिल हो रही हैं। मानो कोई बालक अपने आलस युक्त आंखें झपक रहा हो।

विशेष: प्रस्तुत पंक्तियों में दिनकर उसे पर्णकुटी के वातावरण का वर्णन किया है। हवन अग्नि तथा उसकी सुगंध वातावरण को सुख में बना चुकी है। 

खड़ी बोली हिंदी भाषा में तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है। जैसे गंध, वायु प्राण श्याम सदन लोचन आदि।

बैठे हुए सुखद आतप में मृग रोमन्थन करते हैं,

वन के जीव विवर से बाहर हो विश्रब्ध विचरते हैं।

सूख रहे चीवर, रसाल की नन्हीं झुकी टहनियों पर,

नीचे बिखरे हुए पड़े हैं इंगुद-से चिकने पत्थर।

कठिन शब्द: आतप heat, मृग deer, रोमन्थन (जुगाली) frolic, विवर hole, विश्रब्ध confident, fearless विचरते stroll, चीवर clothes, इंगुद (एक जंगल में पाया जानेवाले वृक्ष जिसके फल चिकने पत्थर जैसे होते हैं)

भावार्थ: पहाड़ी पर स्थित उस पवित्र उपवन में पर्णकुटिया के आसपास सूर्य किरण का ताप लेते हुए हिरण आनंदित होकर जुगाली कर रहे हैं। उस उपवन के जीव-जंतु अपने घरों से बाहर निकाल कर निश्चिंत होकर विचरण कर रहे हैं। एक और आम के वृक्ष की नीचे झुकी हुई छोटी सी टहनियों पर वस्त्र सुख रहे हैं। और उसके नीचे इगुद वृक्ष के फल के समान चिकने चिकने पत्थर बिखरे पड़े हैं। 

 विशेष: प्रस्तुत पंक्तियों में दिनकर उस उपवन के जीव जंतुओं और प्राणियों के सुखमय और स्वच्छंद निर्भय जीवन का वर्णन करते हैं।

खड़ी बोली भाषा का प्रयोग, तत्सम शब्दों का प्रयोग जैसे आतप, मृग, रोमंथन, विवर, विश्रब्ध, चीवर आदि।

अजिन, दर्भ, पालाश, कमंडलु-एक ओर तप के साधन,

एक ओर हैं टँगे धनुष, तूणीर, तीर, बरझे भीषण।

चमक रहा तृण-कुटी-द्वार पर एक परशु आभाशाली,

लौह-दण्ड पर जड़ित पड़ा हो, मानो, अर्ध अंशुमाली।

कठिन शब्द: अजिन- खाल, दर्भ- कुशा या कुश, तप penance, साधन appliance, धनुष bow, तूणीर string, तीर arrow, भीषण horrific, तृण-कुटी grass hut, परशु halberd, आभाशाली shining brightly लौह-दण्ड iron rod, जड़ित fixed, अर्ध अंशुमाली half sun

भावार्थ: उस पर्णकुटिया के प्रांगण में एक और खाल, कुश, टेसू, कमंडल आदि तपश्चार्य के साधन हैं। तो दूसरी ओर धनुष, तूणीर, बरछे, भाले आदि बड़े-बड़े हथियार टंगे हुए हैं। उस पर्णकुटी के द्वार पर एक कुल्हाड़ी के आकार का प्रसिद्ध अस्त्र जिसे परशु कहा जाता है। वह आभा युक्त परशु चमक रहा है। उसे देखकर ऐसा लग रहा है, मानो लोहे के दंड पर अर्ध सूर्य को जड़ दिया गया हो। (अर्थात लोहे की छड़ी पर अर्ध सूर्य को स्थापित कर दिया गया हो।)

विशेष: प्रस्तुत पंक्तियों में दिनकर द्वारा भगवान परशुराम के आश्रम तथा उस पर्णकुटी के प्रांगण में स्थित विभिन्न प्रकार की वस्तुओं तपश्चार्य के साधनों और विभिन्न हथियारों का वर्णन किया गया है।

खड़ी बोली हिंदी भाषा में तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है जैसे अजिन, दर्भ, कमंडलु, कुटी द्वार, दंड आदि।

श्रद्धा बढ़ती अजिन-दर्भ पर, परशु देख मन डरता है,

युद्ध-शिविर या तपोभूमि यह, समझ नहीं कुछ पड़ता है।

हवन-कुण्ड जिसका यह उसके ही क्या हैं ये धनुष-कुठार?

जिस मुनि की यह स्रुवा, उसी की कैसे हो सकती तलवार?

कठिन शब्द: श्रद्धा reverence,  परशु halberd, युद्ध-शिविर war camp, तपोभूमि penance land, स्रुवा (हवन की अग्नि में घी की आहुति देने के लिए प्रयोग की जानेवाली लकड़ी की कुलछी), तलवार sword

भावार्थ: उन तपश्चार्य के साधन खाल, कुश, टेसू आदि को देखकर श्रद्धा भाव बढ़ता जाता है परंतु दूसरी ओर परशु को देखकर मन डरने लगता हैदल अर्थात घबराहट होने लगती है। इन दोनों प्रकार की वस्तुओं और हथियारों को देखकर यह समझ नहीं आता है कि यह एक युद्ध शिविर है या तपश्चार्य करने की तपोभूमि। जिस ऋषि का यह हवन कुंड है क्या उसी के यह धनुष और तलवार है? जिस मुनि की यह हवन कुंड में घी अर्पित करने की कुलची है क्या उसी की यह तलवार भी है?

विशेष: प्रस्तुत पंक्तियों में महाकवि दिनकर द्वारा उस पर्णकुटी के प्रांगण में स्थित वस्तुओं और हथियारों को देखकर जो मानस्थिति उत्पन्न होती है, उसका वर्णन किया गया है।

खड़ी बोली हिंदी का प्रयोग हुआ है। तत्सम शब्दों का अधिक प्रयोग हुआ है। जैसे श्रद्धा, परशु, युद्ध, तपोभूमि, हवनकुंड, मुनि, श्रुवा आदि।

आयी है वीरता तपोवन में क्या पुण्य कमाने को?

या संन्यास साधना में है दैहिक शक्ति जगाने को?

मन ने तन का सिद्ध-यन्त्र अथवा शस्त्रों में पाया है?

या कि वीर कोई योगी से युक्ति सीखने आया है?

कठिन शब्द: वीरता bravery,  तपोवन penance farest, पुण्य virtue, संन्यास, abandonment, दैहिक physical, तन body, शस्त्र weapons योगी ascetic

भावार्थ: क्या इस तपोवन में कोई वीरता या वीर पुरुष पुण्य कमाने आया है? या फिर सन्यास साधना से कोई दैहिक शक्ति जगाने आया है? मन ने अपना सिद्धि यंत्र अथवा सफलता का यंत्र अपने शरीर में पाया है अथवा शास्त्रों में पाया है या फिर कोई वीर पुरुष यहाँ किसी योगी से कला एवं रणनीति सीखने आया है?

विशेष: प्रस्तुत पंक्तियों में दिनकर द्वारा पर्णकुटिया के प्रांगण में दिख रहे उन हथियारों और वस्तुओं को देख कर मन में उठने वाले विभिन्न प्रश्नों का अंकन किया गया है। 

खड़ी बोली भाषा का प्रयोग जिसमें तत्सम शब्दों का अधिक प्रयोग हुआ है।

जैसे: वीरता, पुण्य, साधना, दैहिक, तन, सिद्ध, योगी आदि।

 

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