1. शोध-आलेख लेखन का परिचय: Research Paper Writing
मनुष्य प्राचीन काल से ही कुछ न कुछ खोजने का प्रयास करता रहा है। मनुष्य की इसी खोज को अनुसंधान, खोज, अन्वेषण तथा शोध आदि कहा जाता है। शोध के अंतर्गत किसी विद्यमान सत्य को पुनः स्थापित किया जाता है अथवा उसे फिर से नए रूप में समाज के समक्ष लाया जाता है। शोध करने वाला व्यक्ति (शोधार्थी) विभिन्न तत्वों के आधार पर अपनी समझ, प्रतिभा, अभ्यास एवं सूक्ष्म दृष्टि के द्वारा नए निष्कर्ष समाज के समक्ष रखता है। Shodh Aalekh Lekhan
2. शोध-आलेख लेखन Shodh Aalekh Lekhan की परिभाषाएँ:
- पी. एन. कुक के अनुसार: “अनुसंधान किसी समस्या के प्रति ईमानदारी एवं व्यापक रूप में समझदारी के साथ की गई खोज है, जिसमें तथ्यों सिद्धांतों तथा अर्थों की जानकारी दी जाती है। अनुसंधान की उपलब्धि तथा निष्कर्ष प्रमाणिक तथा पुष्टि योग्य होते हैं, जिससे ज्ञान वृद्धि होती है।”
- जॉर्ज जे. मुले के अनुसार: “समस्याओं के समाधान के लिए व्यवस्थित रूप में बुद्धि और वैज्ञानिक विधि के प्रयोग तथा अर्थ घटक को अनुसंधान कहते हैं।”
- मैकग्रेथ एवं वॉटसन के अनुसार: “अनुसंधान एक प्रक्रिया है, जिसमें शोध प्रविधि का प्रयोग किया जाता है। इसके निष्कर्ष की उपयोगिता होती है जो ज्ञान बुद्धि में सहायक है।प्रगति के लिए प्रोत्साहित करें, समाज के लिए सहायक हो तथा मनुष्य को अधिक प्रभावशाली बना सके और मनुष्य अपनी समस्याओं को प्रभावशाली ढंग से हल कर सके।”
3. शोध-आलेख लेखन में शोधार्थी की रुचि का महत्व:
यदि शोध लेखन का विषय शोधार्थी की रुचि के अनुरूप हो तो शोध कार्य में उस रुचि का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। शोधार्थी अपनी रुचि का विषय होने के कारण विषय की विविधता एवं विभिन्न पहलुओं का अध्ययन मन लगाकर करता है। फलत: उसके शोध आलेख में गहन अध्ययन के लक्षण अनायास रूप से परिलक्षित होते हैं।
शोध विषय जितना रुचिकर होगा उतना ही शोध कार्य तथ्यपरख, गहन विश्लेषणात्मक तथा वैज्ञानिक होगा।
आप यहाँ बालकृष्णन शर्मा ‘नवीन’ की कविता सदा चाँदनी को व्याख्या सहित पढ़ सकते हैं
4. शोध-आलेख हेतु विषय चयन करते समय ध्यान रखने योग्य बिंदु:
- विषय शोध करने योग्य होना आवश्यक है।
- शोध विषय यदि अपने रुचि के अनुरूप हो तब वह कार्य अधिक गहनतापूर्ण होता है।
- विषय से संबंधित विभिन्न प्रकार की सामग्री उपलब्ध है अथवा नहीं इस पर विचार कर लेना आवश्यक है।
- विषय की उपयोगिता एवं प्रासंगिकता पर भी विचार कर लेना आवश्यक होता है।
- विषय पर अन्य शोध कार्यों की जानकारी प्राप्त करना क्योंकि विषय तथा शोध कार्य की पुनरावृत्ति न हो सके।
- निर्धारित समय सीमा के भीतर क्या शोध आलेख लिखा जा सकता है? इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए।
- विषय से संबंधित विशेषज्ञों की राय लेना भी आवश्यक होता है।
- शोध-आलेख का विषय अति व्यापक अथवा अति संक्षिप्त न हो क्योंकि लघु विषय शोध कार्य हेतु स्वीकारने योग्य नहीं होता है और अति विस्तृत विषय पर शोध कार्य निर्धारित समय पर संपन्न नहीं हो पता है। इसलिए विषय संतुलित होना आवश्यक है।
- विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा निर्धारित शोध संबंधी नियमों का अध्ययन आवश्य कर लेना चाहिए।
- शोध-आलेख लेखन से पूर्व विषय विशेषज्ञ का मार्गदर्शन प्राप्त कर लेना आवश्यक होता है।
- शोधार्थी को विवादास्पद विषयों को सामान्य तौर पर नहीं चुनना चाहिए क्योंकि विवाद की स्थिति में शोध कार्य संपन्न नहीं हो पाता है।
- कोई ऐसे विषय का चुनाव नहीं करना चाहिए जिस पर शोध आलेख लेखन के पश्चात धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचती हो अथवा सांप्रदायिक तनाव जैसी स्थिति उत्पन्न होने की संभावना हो।
- विषय का चुनाव तटस्थ दृष्टिकोण से करना चाहिए क्योंकि तटस्थता ही शोधार्थी के विचारों को तथ्यपरख, प्रामाणिक एवं वैज्ञानिक बनाती है।
5. शोध-आलेख हेतु विषय चयन का उद्देश्य:
- शोध-आलेख लेखन से पूर्व एक समस्या अथवा ऐसे विषय का चयन करना चाहिए जिसका उद्देश्य समाज, प्रकृति अथवा जड़-चेतन तत्व के लिए उपयोगी हो सके।
- नवीन धारणाओं विचारों दृष्टिकोणों अथवा निष्कर्ष को समाज के समक्ष रखना शोध आलेख लेखन का प्राथमिक उद्देश्य होना चाहिए।
- विषय से संबंधित प्राप्त मान्यताओं अथवा धारणाओं को अधिक सरल एवं सुगम बनाने का प्रयास शोध आलेख एक और उद्देश्य है।
- समाज, पर्यावरण, प्रकृति, जीव-जंतु के संदर्भ में कुछ सकारात्मक नवीन अवधारणाओं की स्थापना करना शोध आलेख का मुख्य उद्देश्य होता है।
- साहित्य, नृत्य, गायन, चित्रकला आदि कलाओं से संबंधित शोध-आलेख लेखन का उद्देश्य यह होना चाहिए कि वह आलेख इन कलाओं की विशेषताओं, सूक्ष्म तत्वों, प्रासंगिकता, सौंदर्य तथा आनंदमय तत्वों आदि के संदर्भ में सूक्ष्मता एवं गंभीरताओं को साधारण जनता को समझने में सहायक सिद्ध हो सके। यह भी शोधन लेखन का उद्देश्य होता है।
6. शोध-आलेख में विषय अथवा शोध की मौलिकता अनिवार्य होती है:
कोई विषय पूर्णतः मौलिक हो सकता है अथवा मौलिक नहीं भी हो सकता है। किसी विषय पर पूर्वकाल में शोध कार्य हो भी सकते हैं अथवा नहीं भी हो सकते हैं। किंतु जो शोध-आलेख आप लिखना चाहते हैं उसकी मौलिकता अनिवार्य होती है। शोध कार्य पुनः पुनः हो सकते हैं किंतु सभी कार्यों में नए-नए दृष्टिकोण, विचार, नूतन धारणाएँ हो सकती हैं।
मौलिकता शोध-आलेख की आत्मा होती है। मौलिकता के अभाव में शोध-आलेख शोध कार्य नहीं बल्कि किसी अन्य शोधार्थी का चुराया हुआ दृष्टिकोण है। इस प्रकार का कार्य किसी भी दृष्टि से उचित या नैतिक नहीं होता है। इसलिए शोधार्थी को मौलिकता पर विशेष ध्यान देना आवश्यक होता है। बिना मौलिकता के कोई भी शोध, शोध कार्य कहलाने योग्य भी नहीं होता है।
यदि किसी विषय पर पूर्व काल में शोध कार्य हो चुके हैं तो शोधार्थी को यह विचार कर लेना आवश्यक है कि वह अपने शोध-आलेख में स्वयं की मौलिकता प्रदान कर सकता है अथवा नहीं।
यदि मौलिकता प्रदान कर सकता है तभी वह अपना शोध-आलेख लेखन करें अन्यथा न करें तो ही उचित होता है।
किसी विषय की मौलिकता की जानकारी संदर्भ ग्रंथों एवं विषय सूचियों से प्राप्त की जा सकती है।
शोधार्थी अपने शोध-आलेख में विज्ञान संबंधी विषयों में किसी वस्तु अथवा नई विशेषताओं की खोज, साहित्य के क्षेत्र में नई विचारधाराओं, धारणाओं के दृष्टिकोण से समीक्षा करना, कला के क्षेत्र में किसी सिद्धांत की स्थापना करना आदि मौलिकताओं को स्थापित कार सकता है अथवा विश्लेषण कर सकता है।
लिखा गया शोध-आलेख पौराणिक, ऐतिहासिक मान्यताओं को नए दृष्टिकोण से समझने, वर्तमान अथवा भविष्य में मार्गदर्शन करने में सक्षम हो। उस शोध-आलेख की सामाजिक सांस्कृतिक आर्थिक अथवा साहित्यिक उपयोगिता हो।
7. शोध-आलेख की विशेषताएँ:
- शोध-आलेख मौलिक होता है।
- शोध-आलेख की भाषा सरल, सुगम और संतुलित होती है।
- शोध-आलेख में कई मुख्य और उपमुख्य भाग होते हैं।
- शोध-आलेख एक शीर्षक और अनेक उपशीर्षकों में विभाजित होता है।
- शोध-आलेख प्रामाणिक और तथ्यपरक होता है।
- शोध-आलेख लेखन में विभिन्न सहायक सामग्रियों का अध्ययन और उपयोग किया जाता है।
- शोध-आलेख में नवीन अवधारणाओं, विचारधाराओं, मान्यताओं तथा सिद्धांतों को स्थापित किया जाता है।
नोट: विभिन्न विशेषताओं के संदर्भ में यदि विस्तार से समझना और लिखना हो तो इस सामग्री में विभिन्न स्थानों पर इन विशेषताओं पर प्रकाश डाला गया है। आप उसे देख सकते हैं।
8. शोधार्थी की योग्यता अथवा विशेषताएँ:
भारतीय काव्यशास्त्र में काव्य के मुख्यतः तीन हेतु स्वीकार किए गए हैं। प्रतिभा, व्युत्पत्ति (निपुणता) और अभ्यास। यह तीनों हेतु काव्य रचना के लिए अनिवार्य हैं किंतु यही तीनों हेतु किसी शोधार्थी के लिए भी महत्वपूर्ण हैं।
8.1. शोधार्थी के लिए इन तीनों काव्य हेतु का महत्व:
प्रतिभा:
- किसी शोधार्थी में विषय को सूक्ष्म दृष्टि और दृष्टिकोण से पढ़ने, समझने तथा विश्लेषण करने की प्रतिभा होना आवश्यक है।
व्युत्पत्ति (निपुणता):
- शोधार्थी विषय की गहराई, सूक्षमताओं, महत्व एवं प्रासंगिकता को समझने में निपुण हो तथा विषय के सभी पहलुओं को समझकर नहीं मान्यताएँ स्थापित करने, नये सिद्धांतों को गढ़ने, नए विचार प्रदान करने तथा नए दृष्टिकोण प्रदान करने में निपुण हो।
अभ्यास:
- शोधार्थी अभ्यासु हो विषय से संबंधित विभिन्न जानकारियाँ, तथ्यात्मक प्रलेखों तथा विभिन्न शोध कार्यों का अभ्यास करें और अपनी प्रतिभा, व्युत्पत्ति को उत्तरोत्तर विकसित करें।
9. शोध-आलेख लेखन की भाषा:
- शोध-आलेख की भाषा सरल, सुगम एवं प्रभावपूर्ण होनी चाहिए।
- भाषा में पांडित्यपूर्णता, अस्पष्टता, अलंकारिकता, श्लेषयुक्त कठिनता नहीं होनी चाहिए।
- भाषा शोध विषय के अनुरूप सहज, सरल एवं बोधगम्य होनी चाहिए।
- भाषा में विवादास्पद वाक्य, शब्दों एवं अवधारणाओं का प्रयोग करने से बचना चाहिए क्योंकि शोध-आलेख में पाठकों की रुचि बनी रहे और बढ़ती रहे।
10. शोध-आलेख का स्वरूप:
शोध-आलेख के अनेक स्वरूप हो सकते हैं। जैसे विषय के अनुरूप चिंतन करने के पश्चात बिना शीर्षकों, उपशीर्षकों के ही अपने विचार व्यक्त करना। विषय का छोटे-छोटे अध्याय बनाकर विश्लेषण करना। संदर्भों को व्यक्त करके उन संदर्भों का ही विश्लेषण करना आदि।
10.1. साधारण रूप से शोध-आलेख का मान्य स्वरूप:
- एक उत्तम और व्यवस्थित शोध-आलेख, एक मुख्य शीर्षक के साथ कई उपशीर्षकों में विभाजित होता है। जैसे शोध-सार (अमूर्त) Abstract, बीज-शब्द Keywords, विषय का परिचय Introduction of subject, विषय का विश्लेषण Analysis of Topic, निष्कर्ष Conclusion, संदर्भ ग्रंथ सूची List of References आदि।
शोध-सार (अमूर्त): Abstract
- शोध-सार, शोध-आलेख लेखन का मुख्य द्वार होता है। इसके अंतर्गत शोध आलेख का उद्देश्य, महत्व एवं शोध-आलेख की प्रमुख स्थापनाओं का परिचय दिया जाता है। शोध-सार के अंतर्गत शोध-आलेख में चित्रित मुख्य शीर्षक उपशीर्षकों एवं विशेषताओं का भी संक्षिप्त परिचय दिया जाता है।
बीज शब्द: Keywords
- शोध-आलेख में परिभाषित अथवा व्याख्यायित ऐसे शब्द जिनसे शोध को बल प्राप्त होता है। ये बीज-शब्द विषय से संबंधित ऐसे शब्द होते हैं जिनके द्वारा शोधार्थी अपनी स्थापनाओं, धारणाओं तथा मान्यताओं को स्थापित करता है।
शोध विषय का परिचय: Introduction of subject
- शोध-आलेख के इस अंग में शोधार्थी विषय संबंधी सामाजिक, ऐतिहासिक, अथवा उद्देश्य के अनुरूप परिचय देता है। इस अंग को पढ़कर पाठक शोध विषय का महत्व, गंभीरता एवं प्रासंगिकता के संदर्भ में जानकारी प्राप्त करता है। शोधार्थी परिचय में प्रस्तुत शोध आलेख की संक्षिप्त जानकारी भी प्रदान कर सकता है।
शोध विषय का विश्लेषण या समीक्षा: Analysis of Topic
- यह शोध-आलेख का सर्वाधिक महत्वपूर्ण भाग होता है। इसी भाग में शोधार्थी अपने शोध की प्राण प्रतिष्ठा करता है। शोधार्थी का मुख्य उद्देश्य भी इसी भाग में स्थापित होते हैं। शोध-आलेख के अन्य भाग इसी मुख्य भाग पर आधारित होते हैं। इस भाग में शोधार्थी निम्नलिखित पहलुओं को सम्मिलित करता है।
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- शोधार्थी विषय से संबंधित विभिन्न स्रोतों का अध्ययन करता है तथा विश्लेषण या समीक्षा के द्वारा प्रमाण सहित नवीन अवधारणाओं, विचारधाराओं तथा नए दृष्टिकोण को स्थापित करता है। विभिन्न तथ्यों की प्रामाणिकता के आधार पर शोधार्थी नवीन सिद्धांतों की भी स्थापना कर सकता है।
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सामग्री अथवा सूचनाओं के संकलन द्वारा अवधारणा का सृजन:
- हो सकता है कि पूर्व काल में किए गए शोध कार्यों में विषय से संबंधित कुछ सामग्रियों एवं सूचनाओं को शामिल नहीं किया गया हो अथवा किसी तथ्य को महत्व न दिया गया हो। ऐसी स्थिति में शोधार्थी उन अपेक्षित या महत्व न दिए गए तत्वों और सामग्रियों, सूचनाओं के आधार पर अपनी नई अवधारणा को स्थापित कर सकता है।
- शोधार्थी को अपनी स्थापित अवधारणा के संदर्भ में स्रोत के विभिन्न प्रमाणों का उल्लेख करना आवश्यक होता है।
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स्थापित दृष्टिकोण अथवा अवधारणा को पाठकों के दृष्टिकोण से सरल एवं रुचिकर बनाना:
- शोधार्थी पाठकों की रुचि बढ़ाने हेतु अपने शोध कार्य में स्थापित नवीनता और मौलिकता को विभिन्न शीर्षकों उपशीर्षकों एवं बीज-शब्दों में विभाजित कर सकता है किंतु इस विभाजन में विषय तथा वर्णित, समीक्षित या विश्लेषण की गई अवधारणाओं के बीच एकरूपता एवं अंतर्संबंध होना आवश्यक है। अन्यथा शीर्षकों, उपशीर्षकों में पृथकता शोध कार्य की संप्रेषण शक्ति को कम कर देती है।
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स्पष्ट संदेश:
- जहाँ विचार, अवधारणा, दृष्टिकोण की स्थापना समाप्त होती है, उसके पश्चात शोधार्थी का दृष्टिकोण, समाज के लिए संदेश, सलाह अथवा निवेदन स्पष्ट रूप से लिखा जाना आवश्यक होता है।
- यह संदेश शोधार्थी की इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति, विवेचना कौशल तथा प्रतिपादन (विश्लेषण करने की योग्यता) पर निर्भर होता है।
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निष्कर्ष:
- शोध-आलेख का यह अंतिम भाग होता है। इसके अंतर्गत शोधार्थी अपने शोध-आलेख में स्थापित नवीनता एवं मौलिकता के प्रमुख बिंदुओं एवं मान्यताओं के महत्व को संक्षिप्त रूप में लिखने का प्रयास करता है। पाठक निष्कर्ष पढ़ने के पश्चात यह समझने में सक्षम हो जाता है कि प्रस्तुत शोध-आलेख में क्या और किस प्रकार का नया है और यह क्यों महत्वपूर्ण है।
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शोध आलेख के साधनों का उल्लेख अथवा संदर्भ ग्रंथ सूची:
- शोध आलेख लेखन की प्रक्रिया में जिन-जिन सहायक साधनों, सामग्रियों तकनीकियों का प्रयोग हुआ है अथवा जिन साधनों से सहायता प्राप्त की गई है, उन सभी साधनों का उल्लेख करना आवश्यक होता है।
- शोध-आलेख में इन सहायक सामग्रियों का उल्लेख जहाँ भी आवश्यक हो वहाँ अवश्य करना चाहिए। जैसे संदर्भों और टिप्पणियों का उल्लेख करना।
- संदर्भ पंक्तियाँ अथवा शब्द जहाँ से लिया गया है, वही का विवरण देना आवश्यक है। किसी अन्य के विचारों, पंक्तियों अथवा शब्दों के संदर्भ में स्वयं का नाम नहीं बताना चाहिए। जिसके भी विचार, अवधारणा अथवा शब्द हैं उनका सही संदर्भ देना शोध-आलेख हेतु हितकर होता है।
- संदर्भ ग्रंथ सूची का विवरण देते समय सर्वप्रथम रचनाकार, समीक्षक अथवा संपादक का नाम हो, उसके पश्चात रचना अथवा साधन का नाम हो, उसके पश्चात प्रकाशन संस्था, प्रकाशन वर्ष, प्रशासन का संस्करण के साथ अंत में पृष्ठ संख्या का भी उल्लेख करना आवश्यक होता है।