प्रयोजनमूलक हिंदी prayojanmulak Hindi एक ऐसी भाषा है, जिसका प्रयोग समाज में अपने सामाजिक व्यवहार में विशिष्ट उद्देश्य और जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए तथा विशिष्ट लक्ष्य प्राप्ति करने हेतु एक विशिष्ट वर्ग द्वारा (शिक्षित वर्ग जो भाषा का जानकारी हो) विशिष्ट रूप (भाषा का वैज्ञानिक रूप) में किया जाता है।
प्रयोजनमूलक हिन्दी prayojanmulak Hindi का परिचय:
भारत राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, भाषा, लिपि एवं बोलियों की दृष्टिकोण से एक विविधता पूर्ण देश है। भाषा और समाज का इतना घनिष्ठ संबंध है कि हम इन दोनों को एक दूसरे से अलग नहीं कर सकते। भाषा व्यक्ति तथा समाज में विचार विनिमय को सफल बनाती है। भाषा व्यक्ति के विचारों को अभिव्यक्त करने का एक वैज्ञानिक माध्यम है। प्रयोजनमूलक भाषा ध्वनि समूह, रूप संरचना, स्वनिम संरचना और वाक्य विन्यास का एक वैज्ञानिक ढाँचा लिए रहती है। जब यह भाषा विकास करती हुई आगे बढ़ती है, तब यह जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में विस्तृत होती जाती है तथा स्वयं को विकसित भी करती हुई चलती। मानव सभ्यता के विभिन्न क्षेत्रों में वैज्ञानिक रूप से प्रयोग की जानेवाली भाषा को ही प्रयोजनमूलक भाषा कहते हैं। प्रयोजनमूलक हिन्दी भी उपर्युक्त सारी विशेषताओं पर खरी उतरती है और विभिन्न क्षेत्रों में प्रयोग की जाती है।
प्रयोजनमूलक हिन्दी Prayojanmulak Hindi के विभिन्न नाम:
प्रयोजनमूलक हिंदी Prayojanmulak Hindi के संदर्भ में विभिन्न विद्वान अपनी-अपनी समझ के अनुसार विभिन्न नाम देते हैं। वास्तव में प्रयोजनमूलक हिंदी अंग्रेजी शब्द फंक्शनल हिंदी Functional Hindi का ही पर्याय है किंतु विद्वानों में इसके नामकरण पर मतभेद भी विद्यमान हैं। विद्वानों का मत है कि प्रयोजनमूलक हिंदी को किसी एक शब्द से परिभाषित नहीं किया जा सकता क्योंकि प्रयोजनमूलक हिंदी का उद्देश्य बहुत व्यापक है।
अतः प्रयोजनमूलक हिंदी को फंक्शनल हिन्दी, कामकाजी हिन्दी, कार्मिकी हिन्दी, व्यवसायिक हिन्दी, व्यावहारिक हिन्दी तथा प्रयोजनमूलक हिन्दी आदि नाम दिए गए हैं।
प्रयोजनमूलक हिंदी के संदर्भ में डॉ नागेंद्र कहते हैं कि “वस्तुत प्रयोजनमूलक हिंदी के विपरीत अगर कोई हिंदी है, तो वह निष्प्रयोजन्मूलक हिंदी नहीं, वरन आनंदमुलक हिंदी है। आनंद व्यक्ति सापेक्ष है और प्रयोजन समाज की ओर इशारा करता है। हम आनंदमूलक हिंदी के विरोधी नहीं हैं। आनंदमूलक साहित्य के हम भी हिमाती हैं। पर सामाजिक आवश्यकताओं के संदर्भ में हम संप्रेषण के बुनियादी आधार को भी अपनी नजर से ओझल नहीं करना चाहते।”1
यहाँ नागेंद्र जी साहित्यिक हिंदी और प्रयोजनमूलक हिंदी में अंतर स्पष्ट करते हैं। साहित्यिक हिंदी व्यक्ति सापेक्ष के साथ-साथ आनंदमूलक हिंदी है और प्रयोजनमूलक हिंदी समाज के विभिन्न प्रयोजनों के उद्देश्य से प्रयोग की जाती है।
यदि हम प्रयोजनमूलक हिंदी Prayojanmulak Hindi को कामकाजी हिंदी कहते हैं, तो उसमें प्रशासन, व्यापार, कार्यालय आदि का बोध होता है किंतु इस शब्द में वैज्ञानिक, तकनीकी, सामाजिक और अनुसंधान की भाषा अथवा इन क्षेत्रों का इसमें बोध नहीं होता है। इसलिए प्रयोजनमूलक हिंदी को अनेक विद्वानों द्वारा विभिन्न नाम दिए गए हैं।
डॉ. दंगल झाल्ट प्रयोजनमूलक हिंदी की संकल्पना को मानते तो हैं लेकिन इस संकल्पना में फंक्शनल शब्द के स्थान पर अप्लाइड शब्द को उचित ठहराते हैं। उनका कहना है कि फंक्शनल शब्द से कार्यात्मक या क्रियाशील भाव स्पष्ट होते हैं। लेकिन फंक्शनल शब्द से प्रयोजनमूलक या व्यवहारिक संकल्पना स्पष्ट नहीं होती है।
अधिकांश विद्वान प्रयोजनमूलक हिंदी शब्द को ही सर्वथा उचित एवं सार्थक स्वीकार करते हैं।
प्रयोजनमूलक हिंदी की आवश्यकता:
- सन 1949 ई में सी राजगोपालाचारी ने भारतीय संविधान सभा में National Language के स्थान पर State Language शब्द का प्रयोग किया और हिंदी को राजभाषा के रूप में संविधान सभा द्वारा स्थापित किया गया।
- राजभाषा अर्थात संविधान द्वारा सरकारी कामकाज, प्रशासन, सांसद और विधान मंडलों तथा न्यायिक कार्यकलापों के लिए स्वीकृत भाषा से है।
- जब हिंदी को राजभाषा घोषित कर दिया गया तब उसे विभिन्न क्षेत्रों में प्रयोग करने योग्य बनाने हेतु विभिन्न योजनाएं बनाई गई।
- हिंदी को विभिन्न क्षेत्रों में प्रयोग योग्य बनाने हेतु विभिन्न क्षेत्रों में पारिभाषिक शब्दावली की रचना करने हेतु समिति बनाई गई। ताकि शासन के ढांचे में प्रयुक्त अंग्रेजी के स्थान पर हिंदी को अपनाया जा सके।
- इस कार्य के लिए ‘पारिभाषिक शब्दावली आयोग’ (वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग) की स्थापना की गई। इस आयोग को ज्ञान, विज्ञान, आयुर्विज्ञान, अंतरिक्ष विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, प्रौद्योगिकी, विधि, व्यापार, वाणिज्य, शासन, प्रशासन संबंधी हिंदी शब्दावली को तैयार करने का कार्य सौंपा गया। इन सभी क्षेत्रों में हिंदी को प्रयोग योग्य बनाने हेतु प्रयोजनमूलक हिंदी की आवश्यकता होती है।
प्रयोजनमूलक हिंदी की परिभाषाएँ:
प्रयोजनमूलक हिन्दी Prayojanmulak Hindi की परिभाषाएँ अनेक विद्वानों द्वारा दी गयी है लेकिन यहाँ कुछ विद्वानों के अनुसार परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं।
- डॉ. मोटूरी सत्यनारायण के अनुसार “जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उपयोग में लाई जाने वाली हिंदी को ‘प्रयोजनमूलक हिंदी’ कहते हैं।”
- डॉ. प्रभात के अनुसार “कामकाजी भाषा संप्रत्यय का आधार बनती है। वह अनुभव के अंश निकाल देती है, अतः वहां तथ्य और सिद्धांत ही रह जाते हैं। कामकाजी भाषा संप्रत्यय तथ्य और सिद्धांत के समन्वय के साथ परिणामोन्मुखी काम करती है।”
- डॉ. दिलीप सिंह के अनुसार “जीवन और समाज की विभिन्न आवश्यकताओं, दायित्व की पूर्ति के लिए उपयोग में लाई जाने वाली हिंदी ही ‘प्रयोजनमूलक हिंदी’ है।”
- विनोद गोदरे के अनुसार “विशिष्ट प्रयोजन के लिए प्रयोग में लाई जाने वाली भाषा प्रयोजनमूलक भाषा है। विशिष्ट वर्ग द्वारा और विशिष्ट लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रयोग में लाया जाने वाला भाषा रूप ‘प्रयोजनमूलक भाषा’ है।”
- डॉ. माधव सोनटके के अनुसार “सामाजिक व्यवहार में प्रयोजन के लिए प्रयुक्त विशिष्ट भाषा रूप ‘प्रयोजनमूलक भाषा’ कहलाती है।”
- डॉ. अंबादास देशमुख के अनुसार “हिंदी का वह रूप जिसमें प्रशासन के काम में आने वाले शब्द, वाक्य अधिक प्रयोग में आते हैं वह ‘प्रयोजनमूलक हिंदी’ है।”2
सभी परिभाषाओं का सार:
प्रयोजनमूलक हिंदी Prayojanmulak Hindi एक ऐसी भाषा है, जिसका प्रयोग समाज अपने सामाजिक व्यवहार में विशिष्ट प्रयोजन और जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए तथा विशिष्ट लक्ष्य प्राप्ति करने हेतु एक विशिष्ट वर्ग द्वारा (शिक्षित वर्ग जो भाषा का जानकार हो) विशिष्ट रूप (भाषा का वैज्ञानिक रूप) में किया जाता है।
भाषा के विभिन्न रूप:
यहाँ हम जनभाषा, राष्ट्रभाषा और राजभाषा पर विचार करते हैं।
जनभाषा अथवा सामान्य बोलचाल की भाषा:
जिस भाषा का प्रयोग सामान्य जनता अपने सामान्य बोलचाल में तथा सामान्य व्यवहार में प्रयोग में लाती है, उसे जनभाषा कहते हैं। यह भाषा सरल सुबोध तथा समाज में भावों का आदान-प्रदान करने में सक्षम होती है। इस भाषा में व्याकरणिक, उच्चारण संबंधी तथा वाक्य विन्यास के दोष हो सकते हैं किंतु यह भाषा व्यक्ति के भाव को दूसरे व्यक्ति तक सफलतापूर्वक पहुंचती है।
राष्ट्रभाषा:
जनभाषा जब समाज में व्यापक रूप धारण कर लेती है और संपूर्ण देश में विविध व्यवहारों, वैचारिक आदान-प्रदान तथा जीवन का मुख्य माध्यम बन जाती है, तब वह राष्ट्रभाषा बन जाती है।
“जब कोई मानक भाषा उन्नत होकर पूरे राष्ट्र की सामाजिक और सांस्कृतिक विरासत का प्रतिनिधित्व करने लगती है….उसे राष्ट्रभाषा कहते हैं।”3
राष्ट्रभाषा वह भाषा है जिसे राष्ट्र के अधिकांश लोग बोलते हैं तथा इसके साथ उनका सांस्कृतिक और भावात्मक जुड़ाव होता है।
राष्ट्रभाषा की प्रमुख विशेषताएँ:
- राष्ट्रभाषा संपूर्ण देश के किसी एक क्षेत्र में नहीं बल्कि अधिकांश क्षेत्र में बोली जाती है तथा समझी जाती है। संपूर्ण देश में वह भाषा एक संपर्क सूत्र की भूमिका निभाती है।
- राष्ट्रभाषा की संरचना लचीली होती है क्योंकि वह भाषा देश की विभिन्न अन्य भाषाओं की ध्वनि संरचना, वाक्य संरचना एवं शब्द संरचना को ग्रहण करने में सक्षम होती है।
- राष्ट्रभाषा की लिपि सर्वग्राही होती है। अर्थात देश की अन्य विभिन्न भाषाओं के ध्वनि संकेतों को राष्ट्रभाषा की लिपि में व्यवस्थित रूप से लिखा जा सकता है।
- देश के विभिन्न क्षेत्रों, समाज, समुदायों एवं वर्गों द्वारा विभिन्न प्रकार का साहित्य राष्ट्रभाषा में लिखा जाता है।
- राष्ट्रभाषा देश के इतिहास में तथा देश के विभिन्न परिवर्तनों के मोड़ों पर तथा देश के स्वतंत्रता आंदोलन के समय महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- राष्ट्रभाषा में पूरे देश को एक सूत्र में बांधने की क्षमता होती है।
राजभाषा:
किसी देश में सरकारी कामकाज हेतु प्रयोग में लाई जाने वाली भाषा को राजभाषा कहते हैं।
आचार्य नंददुलारे वाजपेई के अनुसार “राजभाषा उसे कहते हैं, जो केंद्रीय और प्रादेशिक सरकारों द्वारा पत्र व्यवहार, राज कार्य और अन्य सरकारी कामकाज की लिखा-पढ़ी के काम में लाई जाए।”4
राजभाषा की संवैधानिक स्थिति और प्रगति:
- सन 1949 में हिंदी को राजभाषा स्वीकार किया गया। भारतीय संविधान भाग 17 अध्याय 1 में संघ की राजभाषा के संदर्भ में कहा गया है कि “अनुच्छेद 343 के अनुसार संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतरराष्ट्रीय रूप होगा।”5
- संविधान के अनुच्छेद 345, 346, 347 में राज्य की राजभाषाओं का वर्णन किया गया है। अनुच्छेद 348 में संविधान में उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय की भाषा का वर्णन है।
- 1955 में राष्ट्रपति के आदेश द्वारा राजभाषा हिंदी की प्रगति हेतु ‘राजभाषा आयोग’ की स्थापना की गई। राजभाषा आयोग द्वारा दिए गए सुझावों का परीक्षण करने हेतु 1959 में ‘संसदीय राजभाषा समिति’ का गठन हुआ।
- उपर्युक्त दोनों सिफ़ारिशों के आधार पर राष्ट्रपति का आदेश जारी हुआ तथा सन 1963 में ‘राजभाषा अधिनियम’ पारित किया गया। सन 1968 में अहिंदी भाषी राज्यों की चिंता को समाप्त करने हेतु एक नया ‘संकल्प’ लाया गया।
सन 1976 में भारत सरकार द्वारा ‘राजभाषा नियम’ लागू किया गया और राजभाषा के क्रियान्वयन का दायित्व ‘गृह मंत्रालय’ को सौंप दिया गया।
राजभाषा में संसदीय कार्यवाही चलती है। उसी भाषा में सारे सचिवालय अपना कामकाज करते हैं तथा उसी में कार्यालय की गतिविधियां संचालित होती हैं।
भारत विभिन्न भाषाओं से युक्त विविधता पूर्ण देश है। संविधान की आठवीं अनुसूची में कुल 22 भाषाओं को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया है। विभिन्न राज्यों से केंद्र सरकार द्वारा किया जाने वाला पत्राचार तथा व्यवहार को सफल बनाने हेतु देश के विभिन्न राज्यों को विभिन्न वर्गों में विभक्त किया गया है।
संपूर्ण देश के राज्यों को तीन वर्गों में विभक्त किया गया है। ‘क’ वर्ग ‘ख’ वर्ग और ‘ग’ वर्ग में शेष राज्य।
‘क’ वर्ग के राज्य:
- इस वर्ग के अंतर्गत उत्तर भारत के हिंदी भाषी राज्यों को सम्मिलित किया गया है। इन राज्यों में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, बिहार के अतिरिक्त नवगठित राज्य छत्तीसगढ़, झारखंड और उत्तराखंड आदि को सम्मिलित किया गया है।
- इन राज्यों में स्वयं राज्य का कामकाज हिंदी में ही होता है और केंद्र सरकार से विभिन्न प्रकार के पत्राचार भी हिंदी में ही होते हैं।
- इन राज्यों के साथ केंद्र सरकार या अन्य कोई राज्य सरकार अंग्रेजी में पत्र व्यवहार करना चाहे तो कर सकते हैं लेकिन उन्हें पत्राचार के साथ हिंदी अनुवाद की एक प्रति भेजना आवश्यक होता है।
‘ख’ वर्ग के राज्य:
- इस वर्ग के अंतर्गत भारत के उन राज्यों को रखा गया है, जिनमें हिंदी अच्छी तरह बोली जाती है, लिखी जाती है और समझी भी जाती है लेकिन इन राज्यों की अपनी क्षेत्रीय भाषाएँ भी हैं।
- इस वर्ग के अंतर्गत गुजरात, महाराष्ट्र और पंजाब को सम्मिलित किया गया है।
- इन राज्यों के साथ केंद्र सरकार जब पत्र व्यवहार करती है, तब हिंदी या अंग्रेजी किसी भी भाषा का प्रयोग कर सकती है।
- ‘क’ वर्ग के राज्य भी इन राज्यों के साथ हिंदी में पत्र व्यवहार कर सकते हैं।
- इन राज्यों का परस्पर पत्र व्यवहार भी दोनों भाषाओं में हिंदी अथवा अंग्रेजी में होता है।
- इस वर्ग के राज्य ‘ग’ वर्ग के राज्यों के साथ जब विभिन्न प्रकार के पत्राचार करते हैं, तब अंग्रेजी में पत्रचार होता है।
‘ग’ वर्ग के राज्य:
- इस वर्ग में उन राज्यों को सम्मिलित किया गया है, जो राज्य उपर्युक्त ‘क’ वर्ग और ‘ख’ वर्ग में सम्मिलित नहीं हैं।
- ‘ग’ वर्ग के राज्य केंद्र सरकार और उपयुक्त दोनों वर्गों के राज्यों के साथ केवल अंग्रेजी में ही पत्राचार करते हैं। किंतु इन्हें ‘क’ वर्ग के राज्यों के साथ जब पत्र व्यवहार करना होता है, तब वे हिंदी अनुवाद की एक प्रति भेजना आवश्यक होता है।
विभिन्न क्षेत्रों से प्रयोजनमूलक हिंदी का संबंध:
जब हम प्रयोजनमूलक हिंदी Prayojanmulak Hindi को विभिन्न सामाजिक प्रयोजनों एवं आवश्यकताओं के लिए प्रयोग करने हेतु स्वीकार करते हैं, तब इसका संबंध सरकारी कार्यालय, विधि और न्याय बैंकिंग एवं वाणिज्यिक प्रतिष्ठान, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, सूचना तंत्र एवं जनसंचार से जुड़ जाता है।
वर्तमान बाजारवाद एवं उपभोक्तावादी मानव सभ्यता में कार्यालयों, बाजरों में कामकाजी व्यवहार विकसित करने और आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रयोजनमूलक हिंदी की आवश्यकता है।
प्रयोजनमूलक हिंदी का प्रयोग सभी प्रकार के आधुनिक विज्ञान एवं तकनीकी क्षेत्र के साथ-साथ प्रशासनिक कार्य, बैंक, कंपनियां, खेलकूद, पत्रकारिता, अंतरिक्ष, विज्ञान, कंप्यूटर तथा समाज के विभिन्न समाज विज्ञान के क्षेत्रों में प्रयोजनमूलक हिंदी की आज आवश्यकता है।
प्रयोजनमूलक हिंदी Prayojanmulak Hindi का संबंध जनसंचार माध्यम के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है। आज हिंदी के समाचार पत्र हो अथवा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम हो सभी में हिंदी एक रोजगार की भाषा बनकर उभरी है।
प्रिंट मीडिया हो, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हो अथवा सोशल मीडिया हो सभी क्षेत्र में हिंदी एक लोक प्रिय भाषा बनकर उभरी है। ऐसी स्थिति में हिंदी का प्रयोजनमूलक रूप प्रासंगिक है।
आज का यह समय वैश्वीकरण एवं बाजारवाद का है। इस समय में राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय संगठन, कंपनियों तथा विभिन्न देशों द्वारा अपने उत्पादन का विक्रय करने हेतु विज्ञापन एक सशक्त माध्यम बनकर उभरा है। और विज्ञापन उसी भाषा में सफल होते हैं, जिस भाषा को बाजार में बोलने वाली जनसंख्या सर्वाधिक हो।
भारत एक बहुत ही बड़ा बाजार के रूप में उभरा है। भारत में हिंदी सर्वाधिक बोली वह समझी जाती है। इसलिए हिंदी भाषा में विज्ञापन का क्षेत्र विभिन्न प्रकार की संभावनाओं को लेकर उभरा है। इस दृष्टिकोण से प्रयोजनमूलक हिंदी का विज्ञापन के क्षेत्र से घनिष्ठ संबंध है।
अनुवाद को प्रयोजनमूलक हिंदी का एक महत्वपूर्ण आधार माना जा सकता है। जब राष्ट्रीय स्तर पर ज्ञान विज्ञान, उद्योग, प्रौद्योगिकी, शासन, प्रशासन, साहित्य, संस्कृति, राजनीतिक घटनाएँ तथा विभिन्न प्रकार के व्यवहारों को संप्रेषित करने के लिए प्रयोजनमूलक हिंदी का व्यापक महत्व है।
प्रसिद्ध कवि एजरा पाउंड कहते हैं कि “अनुवाद एक साहित्यिक पुनर्जीवन है। आधुनिक युग में जहां ज्ञान विज्ञान के नए-नए क्षेत्र खुल रहे हैं, कंप्यूटर टेक्नोलॉजी की होड सी लग रही है, वहां अनुवाद विज्ञान की महत्ता भी सिद्ध होने लगी है। अतः अनुवाद कल समन्वय की कला है।”6
विश्व में विज्ञान प्रौद्योगिकी का व्यापक फैलाव के साथ भारत में भी ज्ञान विज्ञान की बाढ़ आ चुकी है। इस समय हिंदी को नए महत्वपूर्ण भाषिक दायित्व और अभिव्यक्ति के नए-नए क्षेत्र से गुजरना पड़ रहा है। इसलिए प्रयोजनमूलक हिंदी का महत्व भी बढ़ जाता है।
कहना न होगा कि आज प्रयोजनमूलक हिंदी Prayojanmulak Hindi का विभिन्न क्षेत्रों से व्यापक संबंध बन चुका है। चाहे वह शिक्षा हो, शिक्षा का कोई विषय हो, सिद्धांत हो, मान्यताएं हो, विचारधारा हो, नए-नए रोजगार परख क्षेत्र हो, पर्यटन हो, विज्ञान, तकनीकी हो तथा कोई क्षेत्र ऐसा नहीं है जिससे हिंदी का संबंध न हो। इसलिए आज प्रयोजनमूलक हिंदी का महत्व ही नहीं बल्कि इसकी व्यापक प्रासंगिकता भी सिद्ध होती है।
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प्रयोजनमूलक हिंदी के क्षेत्र:
आज के इस वैश्वीकरण के समय में कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है, जिसमें प्रयोजनमूलक हिंदी का प्रवेश न हुआ हो। प्रयोजनमूलक हिंदी Prayojanmulak Hindi एक व्यापक भाषा के रूप में उभरी है। यह अनेक क्षेत्रों में फैली हुई है। लेकिन हम कुछ क्षेत्रों के संदर्भ यहाँ विचार कर सकते हैं।
सरकारी कार्यालय:
- प्रयोजनमूलक हिंदी का यह महत्वपूर्ण क्षेत्र है। केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के विभिन्न पत्राचार आज हिंदी में होने लगे हैं। सरकारी पत्रों का प्रारूप हिंदी में तैयार किया जाने लगा है तथा हिंदी में ही ज्ञापन, आदेश, टिप्पण, निविदाएँ, नीलामी के लिए विज्ञापन, प्रतिवेदन, सरकारी पत्र, अर्ध-सरकारी आदि विभिन्न प्रकार के पत्राचार आज हिंदी में होने लगे हैं।
संसद और विधानसभाएँ:
- संसद के कामकाज के लिए संवैधानिक रूप से राजभाषा हिंदी और अंग्रेजी दोनों का प्रयोग होता है। सदनों की कार्यवाही दोनों भाषाओं में लिखी जाती है और सुनी भी जाती है। कोई सदस्य जिस भाषा में बात करना चाहता है, प्रश्न कर्ता भी उनसे उसी भाषा में प्रश्न पूछता है।
- यदि राष्ट्रपति का अभिभाषण अंग्रेजी में हो, तो उसकी हिंदी अनुवाद की प्रति सदस्यों को दी जाती है। इसी प्रकार बजट भी प्राय हिंदी में ही प्रस्तुत किया जाता है अथवा इसकी हिंदी अनुवाद की प्रति सभी सांसदों को उपलब्ध कराई जाती है।
- हिंदी प्रदेश की विधानसभाओं अथवा विधानपरिषदों में सारा काम हिंदी में ही होता है। अपवाद स्वरूप यदि कोई अंग्रेजी बोलना चाहता है, तब वह हिंदी की अनुवाद प्रति भी प्रस्तुत करता है।
- जिन राज्यों में हिंदी कम बोली जाती है जैसे दक्षिण भारत के राज्य ऐसे राज्यों में कामकाज अपनी क्षेत्रीय भाषा में होता है। लेकिन वहाँ भी हिंदी में भाषण देने, बोलने की सुविधा प्राप्त होती है।
न्यायालय का क्षेत्र:
- विडंबना यह है कि आज भी सर्वोच्च न्यायालय में हिंदी का प्रयोग नहीं होता है। लेकिन फिर भी प्रयोजनमूलक हिंदी Prayojanmulak Hindi का विकास कुछ समय से निचले अदालतों में होने लगा है। हिंदी प्रदेश के न्यायालयों में स्थिति हिंदी के अनुकूल है परंतु सत्र न्यायालय, उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में अभी भी अंग्रेजी का ही बोलबाला है।
- यद्यपि कई विश्वविद्यालय तथा शैक्षिक संस्थानों में कानून की परीक्षा का माध्यम हिंदी हो गया है। हिंदी माध्यम में कानून के स्नातक वकालत के व्यवसाय में प्रवेश कर सकते हैं। लेकिन वे अधिकांशत: सफल नहीं हो पाते हैं।
औद्योगिक प्रतिष्ठान:
- आज के समय में छोटे शहर हो अथवा बड़े शहर सब में औद्योगिक इकाइयों का एक जाल बिछा हुआ है। इन औद्योगिक प्रतिष्ठानों के प्रबंधन एवं कार्यालय की स्थिति भी सरकारी कार्यालय के समान ही है। हिंदी भाषी राज्यों की इकाइयों में अधिकतर काम हिंदी में ही होता है। कच्चे माल की आपूर्ति हो, विपणन व्यवस्था का क्रियान्वयन हो, व्यापारिक इकाई हो, उद्योग मंत्रालय के अधिकारियों की चर्चाएँ हो, उत्पादन विभाग की विभिन्न गतिविधियां हो या फिर विज्ञापन हो सब में हिंदी का आज प्रयोग होने लगा है।
मीडिया का क्षेत्र:
- प्रयोजनमूलक हिंदी Prayojanmulak Hindi का वास्तविक विकास और इसकी शक्ति का यदि पता लगाया जाए तो हमें मीडिया का क्षेत्र दृष्टिगोचर होता है। आज भारत में चाहे प्रिंट मीडिया का क्षेत्र हो या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का क्षेत्र हो या फिर सोशल मीडिया का क्षेत्र हो इन सभी क्षेत्रों में प्रयोजनमूलक हिंदी का व्यापक रूप से प्रयोग होने लगा है।
- प्रिंट मीडिया के अंतर्गत पत्र पत्रिकाएँ, समाचार पत्र, समाचार संकलन, समाचार लेखन आदि सब हिंदी में होने लगा है।
- इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यमों में रेडियो, टीवी आदि की समाचार तथा विभिन्न घटनाओं के समाचार हिंदी में प्रस्तुत लगे हैं। जो हिंदी भाषा में पत्रकारिता करते हैं उनके सुनने, पढ़ने और समझने वाले सदस्य भी अत्यधिक होते हैं।
- सोशल मीडिया में तो प्रयोजनमूलक हिंदी का बोलबाला ही है। आज भारत में सोशल मीडिया प्रयोजनमूलक हिंदी के अभाव में एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकता है।
बैंकिंग क्षेत्र:
- इस क्षेत्र में प्रयोजनमूलक हिंदी Prayojanmulak Hindi एक उल्लेखनीय स्थान बना चुकी है। आज भारत के सरकारी बैंक हो या गैर सरकारी बैंक सभी प्रयोजनमूलक हिंदी का उत्साह के साथ बढ़-चढ़कर प्रयोग कर रहे हैं।
- बैंक के ग्राहकों में किसान, मजदूर, फेरी वाले, सब्जी वाले, मध्यम वर्ग के लोग, निम्न वर्ग के लोग भी सम्मिलित होते हैं। क्योंकि अब बैंक केवल शहरों तक सीमित नहीं रह गए हैं। वह सुदूर देहात तथा ग्रामीण क्षेत्रों में भी अपनी शाखाएँ खोल चुके हैं। अतः बैंक को प्रयोजनमूलक हिंदी Prayojanmulak Hindi का प्रयोग करना आवश्यक हो जाता है।
- बैंक के प्रमुख कागजात हिंदी और प्रादेशिक भाषा में होने लगे हैं। बैंकों में हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए हर राष्ट्रीय कृत बैंक में हिंदी अधिकारी नियुक्त किया जाता है। जो बैंक के अधिकारियों को प्रयोजनमूलक हिंदी Prayojanmulak Hindi में कार्य करने में सहायता प्रदान करते हैं।
- प्रमुख बैंकों में उनकी सहायता के लिए पारिभाषिक शब्दावली हिंदी में उपलब्ध है। बैंक के फॉर्म हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में प्रकाशित किए जाते हैं और अधिकतर ग्राहक हिंदी में ही फॉर्म भरते हैं।
पर्यटन क्षेत्र:
- प्रयोजनमूलक हिंदी Prayojanmulak Hindi के प्रमुख कार्य क्षेत्र में पर्यटन क्षेत्र एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है। इस क्षेत्र में प्रयोजनमूलक हिंदी के विकास की अनंत संभावनाएँ हैं।
- भारत में विभिन्न प्रकार के दर्शनीय स्थल हैं जैसे ताजमहल, खजुराहो, अजंता, एलोरा, हाथी गुफा, विभिन्न प्रकार के मंदिर, धार्मिक आस्थाओं के स्थान तथा प्राकृतिक रूप से सौंदर्य परक स्थान आदि। कहने का तात्पर्य यह है कि भारत एक विविधतापूर्ण देश है और इसमें विभिन्न भाषाओं का प्रयोग होता है लेकिन विभिन्न प्रदेशों के यात्रियों के मध्य प्रयोजनमूलक हिंदी Prayojanmulak Hindi एक संपर्क भाषा के रूप में भूमिका निभाती है।
- विभिन्न दर्शनीय स्थलों में यात्रियों की सुविधा हेतु सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा हिंदी है। यात्रियों द्वारा तथा उस विशिष्ट स्थल के स्थानीय लोगों द्वारा यात्रियों से विचारों का आदान-प्रदान करने का प्रमुख माध्यम प्रयोजनमूलक हिंदी Prayojanmulak Hindi ही बनी हुई है।
अनुवाद का क्षेत्र:
- अनुवाद के मुख्यतः दो रूप होते हैं। एक है साहित्यिक अनुवाद और दूसरा है व्यावहारिक अनुवाद।
- साहित्यिक अनुवाद के अंतर्गत विभिन्न भाषाओं में लिखे गए साहित्य तथा साहित्य की विभिन्न विधाओं में लिखी गई अभिव्यक्ति को हिंदी भाषा में अनुवाद करना और हिंदी भाषा में लिखे गए व्यापक साहित्य को अन्य भाषाओं में अनुवाद करना ही साहित्यिक अनुवाद कहलाता है।
- व्यावसायिक अथवा व्यावहारिक अनुवाद के अंतर्गत विभिन्न प्रकार के क्षेत्र एवं विषयों को सम्मिलित किया जाता है। व्यवहारिक अनुवाद के अंतर्गत विभिन्न सामाजिक विज्ञान, समाजशास्त्र, विज्ञान, कृषि, कानून, भौतिकशास्त्र, रसायन शास्त्र, इंजीनियरिंग तथा स्वास्थ्य संबंधी और प्रबंधन संबंधी विभिन्न प्रकार के विषय हैं। जिनका अनुवाद हिंदी भाषा में हो सकता है।
- तकनीकी विषयों के अनुवाद के भी दो क्षेत्र हैं एक है पारिभाषिक शब्दावली का अनुवाद और दूसरा है किसी ग्रंथ का वाक्य दर वाक्य अनुवाद।
- पारिभाषिक शब्दावली का अनुवाद वास्तव में शब्द निर्माण की प्रक्रिया है। इस क्षेत्र में बहुत काम हुआ है, जिसके परिणाम स्वरूप भारत सरकार के कई विभागों में अपनी पारिभाषिक शब्दावली उपलब्ध है।
प्रयोजनमूलक हिंदी के अन्य क्षेत्र:
उपर्युक्त विभिन्न क्षेत्रों के अलावा प्रयोजनमूलक हिंदी Prayojanmulak Hindi के अन्य अनेक क्षेत्र हैं। इन क्षेत्रों में जीवन बीमा और जनरल बीमा का क्षेत्र महत्वपूर्ण है। इस क्षेत्र में प्रयोजनमूलक हिंदी का व्यापक प्रयोग होता है क्योंकि इसमें दोनों पक्ष प्रचलित अथवा संपर्क भाषा का प्रयोग करते हैं।
इसके अलावा सूचना प्रौद्योगिकी का भी एक महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं। जिसमें कंप्यूटर और इंटरनेट के द्वारा हम दुनिया भर की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इस क्षेत्र में इंटरनेट पर ई-पुस्तक तथा ई-सामग्री को हिंदी में उपलब्ध कराना अथवा हिंदी की सामग्री को अन्य भाषाओं में उपलब्ध कराना महत्वपूर्ण कार्य है।
निष्कर्ष:
प्रयोजनमूलक भाषा मानव जीवन को विभिन्न क्षेत्रों में उन्नति प्राप्त करने हेतु वैज्ञानिक रूप से अपनाई गई विशिष्ट भाषा है। प्रयोजनमूलक हिंदी भी आज विभिन्न क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति दर्ज कर चुकी है। प्रयोजनमूलक हिंदी को अनेक विद्वानों द्वारा विभिन्न नाम दिए गए हैं किंतु अधिकांश विद्वान प्रयोजनमूलक हिंदी Prayojanmulak Hindi शब्द को ही स्वीकार करते हैं और मान्यता प्रदान करते हैं। आज के वैश्वीकरण एवं बाजारवाद के समय में प्रयोजनमूलक हिंदी की व्यापक आवश्यकता है क्योंकि आज विभिन्न प्रकार के क्षेत्र में प्रयोजनमूलक हिंदी का प्रवेश हो चुका है। यदि हमें हमारी भाषा में विभिन्न क्षेत्रों में सफलता प्राप्त करना है, तो प्रयोजनमूलक हिंदी का विकास भी आवश्यक है।
प्रयोजनमूलक हिंदी के अंतर्गत संपर्क भाषा, राष्ट्रभाषा तथा राज्यभाषा जैसे स्वरूप प्राप्त होते हैं। प्रयोजनमूलक हिंदी का संबंध जीवन के व्यापक पहलुओं एवं जीवन को उन्नत बनाने के विभिन्न क्षेत्रों से गहरे रूप से जुड़ा हुआ है। प्रयोजनमूलक हिंदी के अनेक क्षेत्र हैं। इन क्षेत्रों में सरकारी कार्यालय, संसद और विधानसभाएँ, न्यायालय, औद्योगिक प्रतिष्ठान, मीडिया के क्षेत्र के अंतर्गत प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और सोशल मीडिया आदि प्रमुख हैं।
इन क्षेत्रों के अलावा बैंकिंग क्षेत्र, पर्यटन क्षेत्र, जीवन बीमा और जनरल बीमा का क्षेत्र, विज्ञापन का क्षेत्र तथा सूचना प्रौद्योगिकी का क्षेत्र के साथ-साथ अनुवाद का क्षेत्र भी महत्वपूर्ण है।
कहना न होगा कि प्रयोजनमूलक हिंदी की प्रासंगिकता आज के समय में व्यापक रूप से सिद्ध हो चुकी है। फिर भी कुछ क्षेत्र ऐसे भी है जिनमें प्रयोजनमूलक हिन्दी का प्रयोग अभी भी नहीं हो पा रहा है, जैसे न्यायालय। अतः हमें प्रयोजनमूलक हिंदी के विकास की दिशा में ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है।
संदर्भ सूची:
- प्रयोजनमूलक हिंदी के नए आयाम, पृष्ठ-28
- प्रयोजनमूलक हिंदी के नए आयाम, पृष्ठ-29
- प्रयोजनमूलक हिंदी के नए आयाम, पृष्ठ-14
- प्रयोजनमूलक हिंदी के नए आयाम, पृष्ठ-13
- राजभाषा संबंधी संवैधानिक प्रावधान, rajabhasha.gov.in
- प्रयोजनमूलक हिंदी के नए आयाम, पृष्ठ-32
अन्य सहायक ग्रंथ:
- डॉ. रमेशचन्द्र त्रिपाठी, प्रयोजनमूलक हिन्दी विविध परिदृश्य
- बालेन्दुशेखर तिवारी, प्रयोजनमूलक हिन्दी
- डॉ. पंडित बन्ने, हिन्दी का वैश्विक परिदृश्य